बुधवार, 21 जुलाई 2010



सुहाना मोसम था और हवा में नमी थी


आसू की बहती नदी अभी -अभी थमी थी


मिलना तो हम भी चाहते थे पर


उनके पास वक़्त और हमारे पास सांसो की कमी थी


आप का दोस्त अमानुल्लाह खान



मेरे दिल से सदा तेरे खुश रहने की दुआ आये


तू जहाँ भी रहे सारी खुशिया पाए


अगर मेरी याद तुझे कभी रुलाये


तो रब करे तुझे मेरी याद कभी ना आये


आप का दोस्त अमानुल्लाह खान


ज़िक्र जब अपनों का किया करें

तो नाम हमारा भी लिया करें

तारीफ़ ना सही बुराई ही किया करें

पर अपने लफ्जों में हमे भी जगह दिया करें

आप का दोस्त अमानुल्लाह खान

रविवार, 18 जुलाई 2010

हमने भी एक दुआ मांगी थी
और उस दुआ में हमने अपनी मौत मांगी थी
खुदा कहता है तुझे मौत तो दे देता
मगर उस का क्या जिसने तेरी ज़िन्दगी की दुआ मांगी थी