रविवार, 16 मई 2010



मुलाकात भी कभी आसू दे जाती है


नज़रे भी कभी धोका दे जाती है


गुज़रे हुए लम्हों कोयाद करके देखिये


तन्हाई भी कभी सुकून दे जाती है


आप का दोस्त अमानुल्लाह खान

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