शुक्रवार, 14 मई 2010



एक लम्हा एक मंजर गुजर जाता है


जब अपना कोई बेगाना नजर आता है


यूँ तो आवाज़ आती अहि हर शीशे के टूटने की


पर कभी बिन आवाज़ के सब कुछ टूट जाता है


आप का दोस्त अमानुल्लाह खान

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